मॉनसेंटो के खिलाफ ड्वेन जॉनसन को मिली जीत राउंडअप कीटनाशक के बढ़ते खतरे को दर्शाता है

मॉनसेंटो के खिलाफ ड्वेन जॉनसन को मिली जीत राउंडअप कीटनाशक के बढ़ते खतरे को दर्शाता है

राउंडअप दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाला खरपतवारनाशक है. ऐसे में इसके दुष्प्रभाव ने विश्व भर में कितनी इंसानी जिंदगियों को तबाह किया होगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है
तमाम दुश्वारियों (मुश्किलों) और अड़चनों के बावजूद जीत आखिरकार सच की ही होती है. अमेरिकी कीटनाशक निर्माता कंपनी मॉनसेंटो के केस ने यह बात एक बार फिर साबित कर दी है. मॉनसेंटो कंपनी जिसका हाल ही में जर्मन जायंट ‘बायर’ ने अधिग्रहण किया था, कोर्ट में केस हार गई है. कोर्ट ने पाया कि मॉनसेंटो कंपनी के बनाए खरपतवारनाशक (हर्बीसाइड) से ही ड्वेन ली जॉनसन को कैंसर हुआ. यह फैसला सैन फ्रांसिस्को के कैलिफोर्निया सुपीरियर कोर्ट की ग्रैंड जूरी ने सुनाया. जूरी ने नुकसान की भरपाई और मुआवजे के तौर पर जॉनसन को 28.9 करोड़ डॉलर देने का आदेश दिया है.
अफ्रीकी-अमेरिकी मूल के ड्वेन जॉनसन एक स्कूल में ग्राउंड्स कीपर के तौर पर काम करते थे. उसी दौरान वो टर्मिनल कैंसर के शिकार बने. ड्वेन जॉनसन ने आरोप लगाया था कि उन्हें मॉनसेंटो कंपनी के बनाए खरपतवारनाशक ‘राउंडअप’ की वजह से कैंसर हुआ. जॉनसन चूंकि स्कूल के ग्राउंड्स कीपर थे, लिहाजा मैदान पर उगने वाले खरपतवार (वीड) को नष्ट करने के लिए वो ‘हर्बीसाइड राउंडअप’ का इस्तेमाल किया करते थे. लेकिन इस खरपतवारनाशक ने उन्हें कैंसर जैसा भयावह रोग दे दिया. बायर/मॉनसेंटो कंपनी के साथ जॉनसन की कानूनी लड़ाई काफी लंबी चली. लेकिन तमाम मुसीबतें उठाने के बावजूद जॉनसन ने हिम्मत नहीं हारी. आखिरकार कोर्ट में जॉनसन के साथ-साथ वास्तविक विज्ञान की भी जीत हुई.
कोर्ट के फैसले के बाद मॉनसेंटो ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि, कंपनी अब भी अपने उन अध्ययनों पर अडिग है, जो यह बताते हैं कि राउंडअप के प्रभाव में आने से कैंसर नहीं होता है. मॉनसेंटो के उपाध्यक्ष स्कॉट पार्ट्रिज ने कहा, ‘हम इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगे और अपने उत्पाद की सशक्त रूप से रक्षा करेंगे. राउंडअप इंसानी सेहत पर बुरा असर नहीं डालता है. इसके सुरक्षित उपयोग का 40 साल का इतिहास है. यह किसानों और अन्य लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण, प्रभावी और सुरक्षित उपकरण है.’
 
बहरहाल, बायर/मॉनसेंटो कंपनी के खिलाफ कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला बहुत अहम वक्त पर आया है. राउंडअप (ग्लाइफोसेट) चूंकि दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाला खरपतवारनाशक (हर्बीसाइड) है. ऐसे में इसके दुष्प्रभाव ने दुनियाभर में कितनी इंसानी जिंदगियों को तबाह किया होगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है. फिलहाल अकेले अमेरिका में ही राउंडअप की विषाक्तता से प्रभावित करीब 4000 लोगों ने केस दायर कर रखे हैं. जबकि भारत से लेकर अर्जेंटीना तक अनगिनत लोग राउंडअप के दुष्प्रभाव में आकर भयानक मौत का सामना कर रहे हैं. ऐसे में कैलिफोर्निया सुपीरियर कोर्ट के फैसले से इन मुसीबतजदा लोगों में इंसाफ की आस जगी है.
 
औद्योगिक जहर, जैविक हथियारों से बायर/मॉनसेंटो का संबंध काफी पुराना 
औद्योगिक जहर और जैविक हथियारों से बायर/मॉनसेंटो का संबंध काफी पुराना है. पिछली सदी में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान यह कंपनी हिटलर के कंसंट्रेशन कैंपों के लिए मस्टर्ड गैस से लेकर हाइड्रोजन सायनाइड (जाइक्लॉन-बी) जैसे घातक रसायनों का निर्माण कर चुकी है. इनके अलावा कुख्यात जैविक हथियार ‘एजेंट ऑरेंज’ के उत्पादन के लिए भी यह कंपनी बदनाम रही है. वियतनाम युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना ने बड़े पैमाने पर ‘एजेंट ऑरेंज’ का इस्तेमाल किया था. जिसके चलते हजारों लोग हताहत हुए थे.
लेकिन बायर/मॉनसेंटो पर इस बार युद्ध अपराध (वार क्राइम) का आरोप नहीं लगा है, बल्कि उस पर अपने उत्पादों के बारे में झूठ बोलने और लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने का दोष साबित हुआ है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने बायर/मॉनसेंटो के उत्पादों की जांच और मूल्यांकन के बाद साल 2015 में एक रिपोर्ट पेश की थी. डब्ल्यूएचओ की उस रिपोर्ट में कंपनी के कई उत्पादों को ‘संभावित कैंसरजन्य’ पाया गया था. लेकिन उसके बावजूद बायर/मॉनसेंटो ने ‘राउंडअप’ और ‘रेंजर-प्रो रेंज’ जैसे अपने खरपतवारनाशकों (हर्बीसाइड्स) की गलत लेबलिंग की और उन्हें ‘सुरक्षित उत्पादों’ के तौर पर पेश किया और बाजार में धड़ल्ले से बेचा.
 
दरअसल बायर/मॉनसेंटो कंपनी शुरू से ही डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट को खारिज करती आ रही थी. कंपनी इस बात पर अटल थी कि उसके उत्पादों का किसी भी इंसानी जिंदगी पर कोई दुष्प्रभाव नहीं हुआ है. और न ही उसके उत्पादों ने किसी को कैंसर जैसा रोग दिया है. लेकिन कोर्ट ने बायर/मॉनसेंटो कंपनी को आईना दिखा दिया. कोर्ट ने पाया कि कंपनी ने राउंडअप के दुष्प्रभाव के बारे में लोगों को न सिर्फ धोखे में रखा बल्कि उसके ‘संभावित कैंसरजन्य’ गुणों की जानकारी भी छिपाई.
जॉनसन का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों में से एक बॉबी कैनेडी जूनियर ने इस केस को ‘मॉनसेंटो विज्ञान बनाम अमेरिकन जूरी और अमेरिकी न्याय प्रणाली’ के बीच की लड़ाई करार दिया. इसमें कोई शक नहीं है कि विज्ञान की आड़ में मॉनसेंटो का दुष्प्रचार (प्रोपेगेंडा) जूरी को प्रभावित करने में नाकाम साबित हुआ. कोर्ट में बायर/मॉनसेंटो पर बोलते हुए कैनेडी ने कहा, ‘यहां एक ऐसी कंपनी है जो तंबाकू उद्योग की तरह अपने उत्पादों के दुष्परिणामों से बच कर निकलना चाहती है. अपने हर 5 में से एक ग्राहक की मौत की जिम्मेदारी लेने से बचने के लिए तंबाकू कंपनियां इसी तरह से दुष्प्रचार के सभी हथकंडे अपनाती हैं. लेकिन इस बात के पुख्ता वैज्ञानिक सबूत हैं कि मॉनसेंटो कंपनी के उत्पाद ने ही जॉनसन को कैंसर दिया.’
 
 
राउंडअप क्या है?
 
राउंडअप बायर/मॉनसेंटो कंपनी के ग्लाइफोसेट-आधारित खरपतवारनाशक (हर्बीसाइड) का व्यापारिक नाम (ट्रेड नेम) है. वर्तमान में राउंडअप दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाला कीटनाशक/खरपतवारनाशक है. भारत में इस खरपतवारनाशक का व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जा रहा है. भारत में राउंडअप का उपयोग अक्सर अवैध रूप से किया जाता है. ज्यादातर किसान राउंडअप के दुष्परिणामों से अनजान होने की वजह से भी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. राउंडअप को महिको मॉनसेंटो द्वारा पंजाब से लेकर महाराष्ट्र तक में खुलेआम काउंटरों पर एजेंटों और व्यापारियों को बेचा जा रहा है. यह महिको यानी महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्स कंपनी और मॉनसेंटो का 50-50 संयुक्त उद्यम (ज्वाइंट वेंचर) है. भारत के चाय बागानों में राउंडअप का बड़ी तादाद में इस्तेमाल किया जाता है. चाय के पौधों के बीच उगने वाले खरपतवार के खात्मे के लिए राउंडअप को बागानों में छिड़का जाता है. इसके अलावा राउंडअप का उपयोग गेहूं की फसल पर भी किया जाता है. दरअसल किसान गेहूं से नमी को हटाने के लिए इस राउंडअप का इस्तेमाल करते हैं.
 
इस खरपतवारनाशक के संपर्क में आने या शरीर के अंदर चले जाने पर इंसान को कई बीमारियां हो सकती हैं. इससे बच्चों में जन्म दोष हो सकता है, लिवर और किडनी फेल हो सकती हैं, डीएनए को नुकसान पहुंच सकता है. इनके अलावा बांझपन, कैंसर, शरीर में खनिज की कमी, शरीर में अंतःस्राव (इंटरनल ब्लीडिंग), सेरेब्रल एट्रोफी, हृदय कोशिकाओं के साथ-साथ इंसान की सभी कोशिकाओं में जहर फैल सकता है. राउंडअप के उपयोग और इसके शरीर के अंदर चले जाने पर होने वाले नुकसान की लिस्ट बहुत लंबी है.
 
राउंडअप के रहस्य को हल कर पाना फिलहाल मुमकिन नजर नहीं आता है. इस साल की शुरुआत में, फ्रांसीसी वैज्ञानिकों के एक समूह ने पाया कि, बायर/मॉनसेंटो अपने खरपतवारनाशक उत्पाद राउंडअप के जहरीलेपन (विषाक्तता) और उसके फॉर्मूलेंट्स के बारे में झूठ बोल रही है. वैज्ञानिक विश्लेषण के बाद फ्रांसीसी वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि, राउंडअप की सामान्य और अहानिकारक सी दिखने वाली बोतल के अंदर बायर/मॉनसेंटो कंपनी आर्सेनिक, कोबाल्ट, क्रोमियम (Cr), निकल (Ni) और लैड (Pb) जैसे अत्यधिक खतरनाक भारी धातुओं को ‘फॉर्मूलेंट्स’ बताकर बेच रही है. फ्रांसीसी वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि, राउंडअप में पहले से शामिल जहरीले सक्रिय पदार्थ ग्लाइफोसेट की तुलना में फॉर्मूलेंट्स (भारी धातुओं का मिश्रण) लगभग 1 हजार गुना अधिक जहरीले थे.
 
श्रीलंका ने 2014 में खरपतवारनाशक से उत्पन्न हुई इस सार्वजनिक स्वास्थ्य महामारी का संज्ञान लिया था. वैज्ञानिक अध्ययन से साबित हुआ कि 40 हजार से ज्यादा लोगों की किडनी फेल होने और राउंडअप के बीच गहरा संबंध है. जिसके बाद श्रीलंका में खरपतवारनाशकों (हर्बीसाइड्स) के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया गया. यह आपातकालीन कदम सार्वजनिक स्वास्थ्य आपदा को रोकने के लिए उठाया गया था, जो कि श्रीलंका के शक्तिशाली चाय उद्योग के हितों के एकदम विपरीत था. जीत के बाद कैन विश्वविद्यालय के फ्रांसीसी प्रोफेसर और राउंडअप और जीएमओ मामले पर जैव सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. गिल्स-एरिक सेरालिनी ने एक बयान में कहा था कि, ‘राउंडअप को सहनशील बनाए रखने के लिए जीएमओ का जहरीलापन और राउंडअप की खुद की विषाक्तता अब उजागर हो चुकी है. राउंडअप में ग्लाइफोसेट तो होता ही है, साथ ही इसमें आर्सेनिक और अत्यधिक जहरीले पेट्रोलियम डेरिवेटिव भी होते हैं. जिन्हें बायर/मॉनसेंटो कंपनी ने सक्रिय सिद्धांतों के रूप में घोषित नहीं किया है.’
डॉ. गिल्स-एरिक सेरालिनी ने आगे कहा था कि, ‘राउंडअप में शामिल आर्सेनिक से स्किन (त्वचा) कैंसर हो सकता है. इस तथ्य से वैज्ञानिक/डॉक्टर जैसे पेशेवर लोग बखूबी वाकिफ हैं. लेकिन बायर/मॉनसेंटो ने इस तथ्य को अब तक कबूल नहीं किया है. मेरी राय में यह बात अब अपील कोर्ट में समायोजित की जानी चाहिए.’
 
खेतों में कीटनाशकों के छिड़काव से पैदावार में इजाफा हो जाता है लेकिन इससे फसल विषाक्त हो जाते हैं (प्रतीकात्मक)
 
हमारी रोटियों में जहर
 
पंजाब के बठिंडा को भारत में कैंसर की ग्रामीण राजधानी कहा जाता है. वजह है खरपतवारनाशकों/ कीटनाशकों का अत्याधिक इस्तेमाल. जिसके चलते बठिंडा में कैंसर पीड़ितों की तादाद दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है. बठिंडा में हर्बीसाइड का इस्तेमाल करने वालों में रमनदीप सिंह (बदला हुआ नाम) भी शामिल हैं. रमनदीप सिंह किसान हैं और बठिंडा के एक गांव में रहते हैं. सुबह के साढ़े 5 बजे हैं और रमनदीप अपने खेत में खड़े होकर आसमान को निहार रहे हैं. उगते सूरज की किरणें रमनदीप सिंह के चेहरे पर पड़ रही हैं. लेकिन रमनदीप को तो बारिश का इंतजार है. बीते कई दिन से आसमान से बारिश की एक बूंद नहीं गिरी है. खेत सूख रहे हैं. रमनदीप सिंह ने अपने खेत में जो हाईब्रिड बीज बोए हैं, वो बारिश की कमी से बर्बाद हो सकते हैं. लिहाजा रमनदीप चिंतित हैं.
 
बारिश की चिंता के साथ रमनदीप को अपनी फसल पर कीट और परजीवियों के हमलों का डर भी सता रहा है. लिहाजा कीट/परजीवियों के हमलों का ख्याल आने पर वो फौरन घास-फूस के बने अपने छप्पर की ओर दौड़ पड़ते हैं. कुछ देर बाद रमनदीप पीले रंग की एक बोतल लेकर खेत में वापस लौट आते हैं. इस पीली बोतल में वह ‘नई दवा’ है, जिसे खेत में छिड़ककर रमनदीप को कीट/परजीवियों और खरपतवार से निजात मिल जाएगी. रमनदीप ने वो पीली बोतल हमें भी दिखाई. उस पर ग्लाइफोसेट का लेबल लगा है. ग्लाइफोसेट की विषाक्तता से अनजान रमनदीप इसे पानी में मिलाते हैं, और फिर स्प्रे मशीन के जरिए खेत में उसका छिड़काव शुरू कर देते हैं. भारत में लाखों किसानों की यही कहानी है, जिन्हें बिना कोई जानकारी या चेतावनी दिए अत्यधिक जहरीले खरपतवारनाशक और कीटनाशक बेचे जा रहे हैं. ज्यादातर किसान खरपतवारनाशकों/कीटनाशकों के खतरों से पूरी तरह अनजान हैं.
 
पंजाब में कैंसर के मरीजों की तादाद चिंता का विषय है. कैंसर के मरीजों से भरी एक ट्रेन लगभग रोजाना पंजाब से राजस्थान जाती है. जहां के सभी कैंसर अस्पताल मरीजों से अटे रहते हैं. चिकित्सा विशेषज्ञों (मेडिकल एक्सपर्ट्स) ने इलाके के लोगों को होने वाले कैंसर के कई ‘अज्ञात’ कारणों में कीटनाशकों को भी शामिल किया है. कुछ अध्ययनों में इलाके के लोगों के ब्लड सैंपल में कीटनाशकों का उच्च स्तर पाया गया है.
 
इसलिए, मैंने ग्लाइफोसेट-आधारित इस ‘दवा’ के उपयोग के बारे में रमनदीप से पूछताछ की. जिन्होंने मेरे सभी डर और चिंताओं की पुष्टि कर दी. रमनदीप ने बताया कि, ‘ग्लाइफोसेट का इस्तेमाल हम सभी फसलों में करते हैं. लेकिन इसका ज्यादातर उपयोग कपास, चावल और गेहूं की फसल पर किया जाता है. गेहूं की फसल को तेजी से सुखाने के लिए भी हम इसका इस्तेमाल करते हैं. क्योंकि गेहूं की फसल सुखाने का यह सबसे आसान तरीका है.’
 
भारत भी अब राउंडअप के जहर का प्रमुख शिकार बन चुका है
 
कई अध्ययनों से इस बात की पुष्टि हुई है कि, राउंडअप और जीएमओ से अमेरिका और यूरोप में प्रदूषण फैला है. भारत भी अब राउंडअप के जहर का एक प्रमुख शिकार बन चुका है. शिशु उत्पादों से लेकर बीयर तक, हमारे अधिकांश भोजन में राउंडअप के जहरीले अंश छिपे हुए हैं. खासकर गेहूं, सोयाबीन के तेल और ब्राजील, अमेरिका जैसे देशों से आयातित मक्का और मक्का आधारित उत्पादों आदि में राउंडअप के खतरनाक अंश सबसे ज्यादा पाए जाते हैं.
 
राउंडअप के उपयोग पर जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी (जीईएसी) गहरी चिंता जता चुकी है. लेकिन इसके बावजूद राउंडअप और उससे होने वाले नुकसान पर नियंत्रण के लिए भारत में कोई सार्वजनिक तंत्र नहीं है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट की तकनीकी विशेषज्ञ समिति ने सभी हर्बीसाइड टॉलरेंट (एचटी) फसलों पर प्रतिबंध लगाने के लिए कहा है.
 
जबकि बायर/मॉनसेंटो की लॉबी किसानों की आय को दोगुना करने के लिए एचटी/राउंडअप-रेडी बीटी कॉटन की मांग कर रही है. लेकिन विज्ञान इस कदम से सहमत नहीं है. राउंडअप-टॉलरेंट फसलों की शुरुआत न केवल राउंडअप के बढ़ते उपयोग को अनिवार्य कर देगी, बल्कि कृषि ऋण में इजाफे और ग्रामीण इलाकों में कैंसर को महामारी का रुप देने के लिए भी जिम्मेदार होगी.
कई ऐसे सिविल सोसायटी ग्रुप हैं जो इस कदम के विरोध में मजबूती के साथ काम कर रहे हैं. पिछले साल स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय सह-संयोजक डॉ. वंदना शिव और अश्विनी महाजन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में राउंडअप से भारतीयों को होने वाले नुकसान की व्याख्या की थी. उस वक्त उन्होंने भारत में कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने की भी मांग की थी.
 
अश्विनी महाजन ने कहा था, ‘यह बात सार्वजनिक है कि, बायर/मॉनसेंटो की भारतीय सहायक कंपनी महिको मॉनसेंटो के पास एचटी बीटी कॉटन का भारी स्टॉक था. वास्तव में, सीआईसीआर-नागपुर की एक रिपोर्ट ने भारत के कुछ हिस्सों में इन बीजों को अवैध रूप से उगाए जाने की पुष्टि की थी. बायर/मॉनसेंटो कंपनी भारतीय बाजार में अवैध रुप से घुसने के लिए प्रदूषण और मिलावट का रास्ता अपना रही है. हमने इस बारे में प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है. जिसमें हमने राउंडअप की वजह से होने वाले नुकसान को स्पष्ट रुप से उजागर किया है. हमने राउंडअप के प्रसार के खिलाफ देशव्यापी अभियान भी शुरू किया है. राउंडअप से होने वाले नुकसान की चर्चा अब देश के उच्चतम कार्यालय तक पहुंच चुकी है. भारत में मॉनसेंटो के दिन अब पूरे हो चुके हैं.’
 
अमेरिका का भोपाल?
 
साल 1984 में दुनिया ने भोपाल में सबसे भयानक औद्योगिक नरसंहार देखा था. मिथाइल आइसोसायनाइड (एमआईसी) नाम का एक कीटनाशक भोपाल पर काल बनकर टूट पड़ा था. उस हादसे में हजारों लोगों की मौत हुई थी. जबकि लाखों लोगों में आज तक जन्म दोष और विकृतियां पाई जा रही हैं. भोपाल अभी भी इस नरसंहार से लहूलुहान है, जबकि यूनियन कार्बाइड कंपनी (यूसीसी), जोकि अब डाऊ/डुपोंट के अधीन है, उसके मालिक और कर्ताधर्ता साफ बचकर निकल गए. हजारों मौतों और लाखों विकृत इंसानों के प्रति उनकी कोई जवाबदेही नहीं रही.
 
भोपाल गैस कांड के मुख्य आरोपी वेस एंडरसन ने आराम से अपनी पूरी जिंदगी बिताई. भोपाल हादसे के कई साल बाद केप कोड स्थित घर में उसकी मौत हुई. जबकि भोपाल के गैस पीड़ित असहाय होकर सिर्फ अपनी मौत के दिन गिन सकते हैं. भोपाल गैस कांड में यूनियन कार्बाइड कंपनी ने पैसे की पूरी ताकत दिखाई. कंपनी ने ‘रिपोर्ट’ के आधार पर 6 लाख पीड़ितों के लिए महज 47 करोड़ डॉलर चुकाकर मामले का एक बार में ही निपटारा कर लिया. पीड़ितों को बुनियादी चिकित्सा मुहैया कराने और राहत प्रदान करने के लिए यह रकम पर्याप्त नहीं थी. इसके अलावा समझौते में उन पीड़ितों को नजरअंदाज कर दिया गया था जो अभी भी विकृतियों के साथ पैदा हो रहे हैं.
 
 
 
क्या राउंडअप दुनिया का भोपाल पार्ट-2 बनेगा? राउंडअप के जहर का शिकार बने लोगों के मुआवजे के दावों क्या होगा? इन सवालों के जवाब पाने के मैंने बाउम हेडलंड अरिस्टे एंड गोल्डमैन फर्म के वकील पेड्राम एस्फैंडियारी से संपर्क किया, जिन्होंने बायर/मॉनसेंटो के केस में जॉनसन का प्रतिनिधित्व किया था.
 
बायर/मॉनसेंटो Vs जॉनसन केस के फैसले का असर ऐसे बाकी सभी मामलों पर पड़ेगा
 
पेड्राम को भरोसा है कि, बायर/मॉनसेंटो बनाम जॉनसन केस के फैसले का सीधा असर ऐसे बाकी सभी मामलों पर पड़ेगा. फ़र्स्टपोस्ट से बात करते हुए, पेड्राम ने कहा, ‘जूरी में शामिल समाज के 12 निष्पक्ष सदस्य इस फैसले पर पहुंचे कि, उनके सामने पेश किए गए सबूतों के आधार पर राउंडअप कैंसरजन्य है. इनमें से ज्यादातर सबूत अन्य लंबित मामलों में समान होंगे. मॉनसेंटो को अब यह तय करना होगा कि, क्या उसने राउंडअप को लेकर मिस्टर जॉनसन की तरह हजारों लोगों को धोखे में रखा. जिसके चलते वो राउंडअप के जहर का शिकार बने.’
 
इस स्तर पर, बायर/मॉनसेंटो के रवैए और डाऊ/डुपोंट जैसी अन्य कंपनियों के बीच तुलना करना उचित लगता है. यह कंपनियां हजारों लोगों को मौत के मुंह में ले गईं या इनकी वजह से लाखों लोगों को गंभीर बीमारियों और विकृतियों का सामना करना पड़ा है. पेड्राम का अगला वक्तव्य (बयान) मॉनसेंटो द्वारा पैदा की गहरी असंवेदनशीलता को दर्शाता है. पेड्राम ने कहा, ‘इन सभी दुखद कहानियों में एक बात समान है. कंपनियों ने अपने लाभ के लिए इंसानी जिंदगी और उसकी सेहत के प्रति बेहद लापरवाही बरती. लेकिन अब मिस्टर जॉनसन के पक्ष में फैसला आने के बाद मॉनसेंटो जैसी कंपनियों को अपना रवैया बदलना होगा.’
अधिकांश वकीलों की तरह पेड्राम को यकीन है कि, ‘बायर अब मॉनसेंटो के फैलाए जहर के लिए उत्तरदायी होगी और कोर्ट के फैसले को अपने कट्टर और बुरे आचरण का परिणाम मानेगी. बायर और मॉनसेंटो अब अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं.’
वहीं पेड्राम ने राउंडअप के बारे में गलत जानकारी फैलाने वाले वैज्ञानिकों, पत्रकारों और पीआर एजेंसियों को गंभीर चेतावनी भी दी है. उन्होंने कहा, ‘मॉनसेंटो के पास कैंसरजन्य उत्पादों की सुरक्षा के लिए विज्ञान को भ्रमित करने और नियामकों को गुमराह करने का कोई अधिकार नहीं है. मॉनसेंटो के उत्पादों से हजारों लोगों को गंभीर नुकसान हुआ है. जूरी ने अपने फैसले में मॉनसेंटो द्वारा विज्ञान की दिशा को प्रभावित करने के गुप्त प्रयासों और नियामकों से मिलीभगत करने की कोशिशों को ध्यान में रखा. लिहाजा ऐसे कुटिल प्रयास फिर न हों इसके लिए सख्त आर्थिक जुर्माना लगाया है.’
 
हर निवाले के साथ हम खुद को जहरीला बना रहे हैं
 
तो बायर/मॉनसेंटो बनाम जॉनसन केस का फैसला इतना महत्वपूर्ण क्यों है? क्योंकि यह साबित करता है कि, हमारी दुनिया एक कंसंट्रेशन कैंप बन चुकी है और हमारे खाद्य पदार्थ जहरीली गैस बन गए हैं. हर निवाले के साथ हम खुद को जहरीला बना रहे हैं. जबकि हिटलर के जर्मनी से मुनाफा कमाने वाली वही कंपनियां वर्तमान में मौत और बीमारियां फैलाने की लागत पर ऐसा करती रहती हैं. यहां तर्क और चर्चा ‘वैश्विक भूख’ या कृषि तकनीक के बारे में नहीं होना चाहिए, बल्कि जिंदगी के बारे में होना चाहिए.
क्या भारत दुष्प्रचार के आगे घुटने टेक देगा या विज्ञान के साथ खड़ा होगा? बायर/मॉनसेंटो अपने जहर के जरिए हर दिन मौत फैला रही हैं. जबकि हम अभी भी बहस में उलझे हुए हैं और वैश्विक भूख को कम करने के उद्देश्य से दुनिया की आबादी को बौद्धिक रूप से विषाक्त बनाने की कोशिश कर रहे हैं. भूख और जहर के बीच कई ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब तलाशना अभी बाकी है. बहरहाल इस मामले में जॉनसन ने दुनिया को जरूर बदल दिया है.
 
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